अक्टूबर 30, 2023 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के कैंपस पर एक ऐसा मीटिंग हुई, जिसने भारत और इंडोनेशिया के बीच शिक्षा के नए दौर की शुरुआत की। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो वाइस चांसलर प्रोफेसर एम. मोहसिन खान के कार्यालय में इंडोनेशिया दूतावास के उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने एक गहन बैठक की, जिसका लक्ष्य था — दोनों देशों के बीच शैक्षणिक संबंधों को सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं रखना, बल्कि उन्हें एक स्थायी औपचारिक संरचना में बदलना। इंडोनेशियाई पक्ष से शिक्षा एवं सांस्कृतिक अटैचे प्रोफेसर फुआद, प्रथम सचिव (राजनीतिक विभाग) श्री मुसोनी, प्रथम सचिव (प्रोटोकॉल और कांसुलर विभाग) श्री अध्य बुवोनो, और श्री अगो मुल्यावान शामिल थे। एएमयू की ओर से रजिस्ट्रार प्रोफेसर आसिम ज़फ़र और प्रोफेसर विभा शर्मा ने भी इस बैठक में हिस्सा लिया।

इस्लामी अध्ययन: सांस्कृतिक पुल के रूप में

बैठक में दोनों पक्षों ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्रों पर चर्चा की, लेकिन सबसे ज़ोर दिया गया — इस्लामी अध्ययन पर। यह कोई साधारण विषय नहीं है। इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम बहुमत वाला देश है, और AMU भारत में इस्लामी शिक्षा और अध्ययन का एक प्रमुख केंद्र है। दोनों संस्थानों के बीच इस क्षेत्र में सहयोग करना, सिर्फ शिक्षा का मुद्दा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक समझ बढ़ाने का एक तरीका है। प्रोफेसर फुआद ने स्पष्ट किया, "हमारे छात्र यहाँ न केवल अरबी या फिक्ह का अध्ययन करते हैं, बल्कि एक ऐसी परंपरा से जुड़ते हैं जो दक्षिण पूर्व एशिया और भारत के बीच सदियों से जुड़ी है।"

छात्रों से मुलाकात: बातचीत का असली दर्पण

बैठक से पहले ही, इंडोनेशियाई प्रतिनिधिमंडल ने AMU के कैंपस में अध्ययनरत 47 इंडोनेशियाई छात्रों से व्यक्तिगत रूप से बातचीत की। यह एक ज़रूरी कदम था। छात्रों ने बताया कि उन्हें भारतीय शिक्षण पद्धति में अधिक स्वतंत्रता मिलती है, लेकिन आवास और भोजन की सुविधाएँ अभी भी सुधार की जरूरत रखती हैं। एक छात्र ने कहा, "हमें इंडोनेशियाई खाना मिलता है, लेकिन अगर कोई रोज़ाना नमाज़ के बाद एक छोटा सा सामूहिक चाय का समय हो जाए, तो यहाँ का माहौल और भी अच्छा हो जाएगा।" इस बातचीत ने दूतावास के लिए एक अहम संकेत दिया — शिक्षा सिर्फ कक्षाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि रोज़मर्रा के अनुभवों से भी जुड़ी है।

समझौता ज्ञापन: एक नए युग की शुरुआत

बैठक के अंत में दोनों पक्षों ने एक विस्तृत कार्य योजना तैयार करने पर सहमति व्यक्त की। इसमें शामिल हैं: छात्र विनिमय कार्यक्रम (प्रति वर्ष कम से कम 25 छात्र प्रत्येक दिशा में), शिक्षक आदान-प्रदान, संयुक्त शोध परियोजनाएँ (खासकर इस्लामी विचारधारा और आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर), और द्विपक्षीय सम्मेलनों का आयोजन। अगले छह महीनों में एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करने की योजना है — जो इस सहयोग को कानूनी और संस्थागत रूप देगा। यह वह बिंदु है जहाँ बातचीत से बदलाव आता है।

क्यों यह महत्वपूर्ण है?

भारत और इंडोनेशिया के बीच व्यापार और सुरक्षा संबंधों की बात तो अक्सर होती रहती है, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में इतना गहरा रुख कम ही देखा गया है। AMU अब तक अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के छात्रों को आकर्षित कर चुका है, लेकिन इंडोनेशियाई छात्रों की संख्या पिछले पांच वर्षों में 120% बढ़ी है। यह एक अहम ट्रेंड है। इंडोनेशिया की शिक्षा मंत्रालय ने हाल ही में भारत को एक प्रमुख शिक्षा गंतव्य के रूप में चिह्नित किया है। इसलिए यह समझौता सिर्फ दो संस्थानों के बीच नहीं, बल्कि दो देशों के बीच एक नए साझा भविष्य की नींव है।

अगले कदम: वास्तविकता में बदलना

अब यह देखना होगा कि ये वादे कितने तेज़ी से कार्यान्वित होते हैं। पहला कदम — एक साझा वेबसाइट बनाना, जहाँ छात्र और शिक्षक अपने अनुभव और अवसरों को शेयर कर सकें। दूसरा — एक छात्र विनिमय के लिए वीज़ा प्रक्रिया में सरलीकरण। तीसरा — इंडोनेशियाई भाषा के लिए AMU में एक नया विभाग शुरू करना। ये सब तभी संभव होगा जब दोनों तरफ निरंतर दायित्व लिया जाए। प्रो वाइस चांसलर खान ने कहा, "हम यहाँ बस छात्र नहीं भेज रहे, हम विचार भेज रहे हैं।"

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

इंडोनेशियाई छात्रों के लिए AMU में शिक्षा क्यों आकर्षक है?

AMU इस्लामी अध्ययन में वैश्विक मान्यता प्राप्त है और इंडोनेशियाई छात्रों के लिए यहाँ शिक्षा की लागत यूरोप या अमेरिका की तुलना में काफी कम है। 2023 तक, यहाँ लगभग 47 इंडोनेशियाई छात्र दर्ज हैं, जिनमें से 70% मानविकी और सामाजिक विज्ञान में पढ़ रहे हैं। भारतीय शिक्षण पद्धति में व्यावहारिक अनुभव और शोध स्वतंत्रता भी आकर्षण का कारण है।

इस समझौते से भारतीय छात्रों को क्या लाभ होगा?

भारतीय छात्र इंडोनेशिया के विश्वविद्यालयों, खासकर इंडोनेशियाई इस्लामी विश्वविद्यालयों (UIN) में छात्रवृत्ति के लिए आवेदन कर सकेंगे। इंडोनेशिया ने हाल ही में 500 भारतीय छात्रों के लिए शिक्षा छात्रवृत्ति की घोषणा की है। इससे भारतीय छात्रों को दक्षिण पूर्व एशिया में शोध और सांस्कृतिक अनुभव प्राप्त होगा।

इस समझौते का भारत-इंडोनेशिया संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

यह शैक्षणिक सहयोग दोनों देशों के बीच व्यापार और सुरक्षा संबंधों का एक नया स्तर बनाएगा। दोनों देश एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक नए सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था की नींव रख रहे हैं। शिक्षा के माध्यम से बनने वाले व्यक्तिगत संबंध, भविष्य के नेतृत्व को बदल सकते हैं — जो कि राजनीति से अधिक स्थायी होते हैं।

क्या इस समझौते के तहत ऑनलाइन शिक्षा का भी विकास होगा?

हाँ, दोनों पक्षों ने डिजिटल शिक्षा पर भी चर्चा की है। एक साझा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाने की योजना है, जहाँ दोनों विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम, वीडियो लेक्चर और शोध पत्र उपलब्ध होंगे। इससे दूरस्थ छात्र भी लाभान्वित होंगे, खासकर उन जिलों में जहाँ अंतरराष्ट्रीय शिक्षा के अवसर सीमित हैं।

इंडोनेशियाई दूतावास ने AMU के अलावा भारत में किन संस्थानों से संपर्क किया है?

इंडोनेशियाई दूतावास ने पिछले दो वर्षों में दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के साथ भी शैक्षणिक सहयोग की बातचीत की है। लेकिन AMU एकमात्र संस्थान है जहाँ इस्लामी अध्ययन और छात्र विनिमय को इतनी गहराई से शामिल किया गया है।

इस समझौते का भविष्य में अन्य देशों के साथ सहयोग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

यह एक मॉडल बन सकता है। अगर यह सफल होता है, तो श्रीलंका, मलेशिया और बांग्लादेश भी इस तरह के समझौतों के लिए भारत के साथ संपर्क कर सकते हैं। इससे भारत एशिया में इस्लामी शिक्षा का एक नया केंद्र बन सकता है — जो विश्व के अन्य भागों के साथ भी जुड़ सकता है।

हमारे बारे में प्रवीण मल्लिक

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